भगवान आदिनाथ के ज्ञान कल्याणक पर उमड़ी श्रद्धा, भक्ति और आस्था की अनुपम गंगा।
आहार चर्या में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के चतुर्थ दिवस पर मुनिसंघ के सान्निध्य में हुआ भव्य आयोजन।
बहोरीबंद:
बहोरीबंद नगरी में धर्म, आस्था और आत्मशुद्धि का अद्भुत संगम उस समय देखने को मिला जब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के चतुर्थ दिवस पर भगवान आदिनाथ के ज्ञान कल्याणक की पुण्य स्मृति में भव्य आयोजन संपन्न हुआ। प्रातःकाल से ही मंदिर प्रांगण श्रद्धालुओं की श्रद्धा से सराबोर हो उठा। भगवान आदिनाथ की आहार चर्या देखने और उसमें सहभागी बनने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।
इस दिव्य अवसर पर मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज और मुनि श्री प्रसाद सागर जी ससंघ की पावन उपस्थिति में विशाल धर्मसभा का आयोजन किया गया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री ने कहा कि भगवान आदिनाथ के काल से जो दान परंपरा प्रारंभ हुई थी, वह आज भी जीवंत है और श्रावकगण उसी श्रद्धा और समर्पण से साधु-संतों को आहार देकर पुण्य का संचय कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि भगवान आदिकुमार जब छह माह की तपस्या के उपरांत आहार के लिए नगर में पधारे, तब राजा सौम और राजा श्रेयांश ने नवधा भक्ति पूर्वक इच्छु रस का आहार प्रदान कर आहार दान की परंपरा का शुभारंभ किया। उस क्षण को ही दान तीर्थ की स्थापना का मूल क्षण माना गया, जो आज भी अखंड रूप से प्रवाहित है।
ज्ञान कल्याणक के इस विशेष दिवस पर भगवान की आहार चर्या विधिपूर्वक संपन्न कराई गई। आहार चर्या के उपरांत भगवान वनगमन को प्रस्थान कर गए, जहां उन्होंने घनघोर तपस्या कर आत्मज्ञान प्राप्त किया। यही आत्मज्ञान आगे चलकर केवलज्ञान का रूप धारण करता है, जो मोक्ष का द्वार खोलता है। इस क्रम में भगवान आदिनाथ ने असि, मसी, कृषि, शिल्प, वाणिज्य सहित 72 कलाओं का उपदेश देकर समाज के समग्र विकास की नींव रखी। उन्होंने अंक और अक्षर विद्या की शिक्षा अपनी पुत्रियों ब्राह्मी और सुंदरी को देकर ज्ञान युग का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम के अंतर्गत प्रातः भगवान का अभिषेक, शांतिधारा, विशेष पूजन एवं आहार चर्या सहित सभी धार्मिक विधानों का भव्य आयोजन श्रद्धालुओं के समक्ष विधिविधान से संपन्न हुआ। सम्पूर्ण कार्यक्रम मुनिसंघ के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक ऊर्जा और तप की गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ। श्रद्धालुओं ने भगवान की आहार चर्या में भक्ति और भाव से भागीदारी की, जिससे वातावरण में दिव्यता और श्रद्धा का संचार हुआ।
इस आयोजन के माध्यम से समाज को यह संदेश मिला कि धर्म, तप और दान का मार्ग ही जीवन को सार्थकता की ओर ले जाता है। पंचकल्याणक महोत्सव की प्रत्येक विधि ने श्रद्धालुओं के हृदय में आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया और उन्हें भगवान आदिनाथ की तप-यात्रा से आत्मकल्याण की प्रेरणा मिली। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि समाज को एकजुटता, सहयोग और धर्मपथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा भी देता रहा।
भगवान आदिनाथ के ज्ञान कल्याणक की स्मृति में आयोजित यह दिव्य पर्व आस्था, भक्ति और संस्कारों की त्रिवेणी के रूप में स्थापित हुआ, जिसने जनमानस को धर्म के मूल स्वरूप से जोड़ने का महान कार्य किया।