ग्रामपंचायत देगवा महगवां में निर्माणाधीन सामुदायिक भवन में सरपंच सचिव की मिलीभगत से भारी भ्रष्टाचार।
20 लाख की लागत से बन रहे भवन में घटिया सामग्री का उपयोग, सरपंच-सचिव-इंजीनियर की मिलीभगत का आरोप।
ढीमरखेड़ा, कटनी:
कटनी जिले के ढीमरखेड़ा जनपद की ग्राम पंचायत देगवा महगवां में 20 लाख रुपये की लागत से निर्माणाधीन सामुदायिक भवन को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। यह भवन गांव के सामाजिक व सांस्कृतिक आयोजनों के लिए तैयार किया जा रहा है, लेकिन निर्माण की शुरुआत से ही ग्रामीणों के बीच इसकी गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते आ रहे थे, जो अब आक्रोश का रूप ले चुके हैं।
ग्रामीणों का स्पष्ट आरोप है कि भवन निर्माण कार्य में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। उपयोग में लाई जा रही रेत घटिया दर्जे की है, जिसमें मानकों की अनदेखी की गई है। गिट्टी में मिट्टी की अधिक मात्रा और ईंटों की खराब गुणवत्ता को लेकर भी ग्रामीणों ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि ईंटें हाथ लगाते ही टूट जाती हैं, जो निर्माण की मजबूती और टिकाऊपन पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती हैं।
ग्रामीणों ने इस भ्रष्टाचार के लिए ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव और निर्माण कार्य से जुड़े इंजीनियर को जिम्मेदार ठहराया है। ग्रामीणों का आरोप है कि सामग्री की खरीद-फरोख्त में हेरफेर कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले भी मनरेगा अंतर्गत हुए कार्यों जैसे बाउंड्री वॉल, तालाब जीर्णोद्धार और नाला तट सौंदर्यीकरण में इसी तरह की मिलीभगत से भ्रष्टाचार हुआ था, जिसकी शिकायतें कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन और राज्यपाल तक की गईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
यह भी आरोप लगाया गया है कि जब भी कोई निरीक्षण अधिकारी निर्माण स्थल पर पहुंचता है, तो सामग्री की गुणवत्ता की ठीक से जांच नहीं की जाती। निरीक्षण प्रक्रिया केवल औपचारिकता बनकर रह गई है, जिससे ग्रामीणों का प्रशासन पर भरोसा टूटता जा रहा है।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए। उनका कहना है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आंदोलन करने को मजबूर होंगे, क्योंकि यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि पूरे गांव की जरूरत और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
वर्तमान में पंचायत और जनपद स्तर के अधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। प्रशासन की निष्क्रियता ही ग्रामीणों के रोष को और गहरा कर रही है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला प्रशासन इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेता है और कब तक दोषियों के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाते हैं।