विद्यार्थियों को जैविक फफूंद नाशक दवा ट्राइकोडर्मा विरडी के उपयोग का दिया गया प्रशिक्षण।
स्वामी विवेकानंद शासकीय महाविद्यालय स्लीमनाबाद में विद्यार्थियों को जैविक खेती के तहत कम लागत तकनीकी का प्रशिक्षण।
कटनी:
स्वामी विवेकानंद शासकीय महाविद्यालय स्लीमनाबाद में विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर, स्वावलंबी एवं स्वरोजगार स्थापित करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग द्वारा व्यावसायिक शिक्षा के अंतर्गत जैविक खेती का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। यह प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्रचार्या डॉ. सरिता पांडे के मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. प्रीति नेगी के सहयोग से जैविक कृषि विशेषज्ञ रामसुख दुबे द्वारा दिया गया।
प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को कम लागत तकनीकी, जीरो बजट फार्मिंग के अंतर्गत जैविक फफूंद नाशक दवा ट्राइकोडर्मा विरडी के उपयोग के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। जैविक कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि ट्राइकोडर्मा विरडी का उपयोग विभिन्न प्रकार के फसल रोगों के नियंत्रण, पौधों की अच्छी वृद्धि एवं मृदा में उपस्थित सूत्र कृमि के नियंत्रण के लिए किया जाता है।
विशेषज्ञ ने बताया कि ट्राइकोडर्मा विरडी के उपयोग से उगरा, जड़ सड़न, पौध गलन, कंडवा, भूमि जनित एवं बीज जनित बीमारियों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। प्रशिक्षण के दौरान विद्यार्थियों को फसलों में रोग नियंत्रण के विभिन्न तकनीकी उपायों के बारे में विस्तार से बताया गया।
बीज उपचार प्रक्रिया:
ट्राइकोडर्मा विरडी के बीज उपचार के लिए 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 1 किलो बीज में मिलाकर बुवाई से पूर्व उपचारित किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया बीज जनित रोगों के नियंत्रण के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
रोपणी उपचार प्रक्रिया:
रोपणी उपचार के लिए बुवाई से पूर्व 10 से 25 ग्राम ट्राइकोडर्मा को प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के लिए कंपोस्ट के साथ मिलाकर रोपणी को उपचारित करना चाहिए। इससे पौधों की वृद्धि दर बढ़ती है और रोगों से सुरक्षा मिलती है।
जड़ एवं कंद उपचार प्रक्रिया:
पौधों की जड़ों और कंदों के उपचार के लिए 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 1 लीटर पानी में घोलकर जड़ एवं कंदों को उपचारित किया जाता है। इससे जड़ सड़न एवं कंद सड़न जैसी समस्याओं से बचाव होता है।
भूमि उपचार प्रक्रिया:
भूमि उपचार के लिए 5 किलो ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट के साथ मिलाकर खेत की अंतिम जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए। यह विधि भूमि जनित रोगों के नियंत्रण के लिए अत्यंत प्रभावी साबित होती है
प्रशिक्षण के अंत में जैविक कृषि विशेषज्ञ रामसुख दुबे ने बताया कि ट्राइकोडर्मा विरडी का प्रयोग किसानों के लिए कम लागत में अधिक उत्पादकता देने वाला कारगर उपाय है। यह जैविक खेती के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण और फसल उत्पादन वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है।
महाविद्यालय की प्रचार्या डॉ. सरिता पांडे ने कहा कि विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर एवं स्वावलंबी बनाने के लिए इस तरह के प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि जैविक खेती को बढ़ावा देकर न केवल मृदा स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सकता है बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी की जा सकती है।
प्रशिक्षण के समापन पर सभी विद्यार्थियों ने जैविक खेती को अपनाने और फसलों में रसायनिक दवाओं के बजाय जैविक फफूंद नाशक दवा ट्राइकोडर्मा विरडी के उपयोग का संकल्प लिया। इस अवसर पर उपस्थित विद्यार्थियों ने प्रशिक्षण के लिए महाविद्यालय प्रबंधन एवं कृषि विशेषज्ञ का आभार व्यक्त किया।
यह प्रशिक्षण न केवल विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक सिद्ध हुआ बल्कि उन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर और स्वरोजगार स्थापित करने के लिए प्रेरित भी किया। जैविक खेती के इस प्रशिक्षण से ग्रामीण क्षेत्रों में जैविक कृषि को बढ़ावा मिलने की संभावना प्रबल हुई है।