दारासिंह एक महान पहलवान, सशक्त अभिनेता और प्रेरणादायक व्यक्तित्व।

 दारासिंह एक महान पहलवान, सशक्त अभिनेता और प्रेरणादायक व्यक्तित्व।

दारा सिंह: भारतीय कुश्ती का अपराजेय योद्धा।

संघर्ष, शक्ति और समर्पण की अद्वितीय गाथा।

एक पहलवान से विश्व चैंपियन तक का ऐतिहासिक सफर

भारतीय कुश्ती का स्वर्णिम अध्याय।

बॉलीवुड से राजनीति तक एक अपराजेय व्यक्तित्व।

बचपन और शुरुआती जीवन।

कटनी,मध्यप्रदेश:

19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर जिले के धरमूचक गांव में जन्मे दारा सिंह भारतीय कुश्ती के इतिहास में एक ऐसा नाम हैं, जिनका जिक्र बिना किसी हार के किया जाता है। उनका पूरा नाम दारा सिंह रंधावा था। वे बचपन से ही शारीरिक रूप से मजबूत और मेहनती थे। खेतों में काम करने और देसी व्यायाम करने की वजह से उनकी कद-काठी बचपन से ही प्रभावशाली थी।  

भारतीय ग्रामीण परिवेश में कुश्ती हमेशा से एक प्रतिष्ठित खेल माना जाता रहा है। दारा सिंह भी इसी परंपरा का हिस्सा बने और उन्होंने युवा अवस्था में ही अखाड़े की मिट्टी से दोस्ती कर ली। पारंपरिक दंड-बैठक, मल्लखंभ और गदा अभ्यास के जरिए उन्होंने अपनी ताकत को निखारा। उनके अंदर की जिज्ञासा और मेहनत ने उन्हें कुश्ती के अखाड़े में उतरने के लिए प्रेरित किया।  

उनके माता-पिता भी उनकी इस रुचि से परिचित थे, लेकिन वे चाहते थे कि वे शिक्षा पर ध्यान दें। हालांकि, दारा सिंह का झुकाव शारीरिक ताकत और कुश्ती की ओर अधिक था। बड़े होने के साथ ही वे स्थानीय दंगलों में भाग लेने लगे और अपनी ताकत का प्रदर्शन कर लोगों को प्रभावित करने लगे।  

             अपराजेय रेसलिंग करियर:

दारा सिंह ने कुश्ती के क्षेत्र में जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे किसी भी पहलवान के लिए प्रेरणा से कम नहीं हैं। उन्होंने भारत में अपनी कुश्ती यात्रा की शुरुआत की और जल्द ही अपने गांव, जिले और फिर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली। उनकी गजब की ताकत और फुर्ती ने उन्हें कुश्ती जगत का उभरता सितारा बना दिया।  

दारा सिंह ने सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी कुश्ती का लोहा मनवाया। 1950 के दशक में वे विदेशों में जाकर कई नामी पहलवानों से भिड़े और जीत हासिल की। उन्होंने कनाडा, न्यूजीलैंड, अमेरिका, जापान और कई यूरोपीय देशों में कुश्ती लड़ी और हर मुकाबले में विजयी रहे।  

      ऐतिहासिक मुकाबले और उपलब्धियां:

दारा सिंह का कुश्ती करियर कई ऐतिहासिक मुकाबलों से भरा हुआ था। उन्होंने किंग कांग, लू थेज़, जॉर्ज गॉर्डियेंको, जॉन डा सिल्वा, स्काई हाई ली जैसे दिग्गज पहलवानों को हराकर अपनी ताकत और प्रतिभा का प्रदर्शन किया।  

1968 में उन्होंने रेसलिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती और दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय पहलवान किसी से कम नहीं हैं। उनके हर मुकाबले में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ती थी, जो उनकी ताकत और प्रतिभा को देखने के लिए बेताब रहती थी।  

भारत में उन्हें रुस्तम-ए-हिंद और रुस्तम-ए-एशिया के खिताबों से नवाजा गया। उनके मजबूत शरीर और अपराजेय रिकॉर्ड की वजह से उन्हें भारत का सबसे ताकतवर आदमी भी कहा जाने लगा।  

       बॉलीवुड और टेलीविजन में योगदान:

दारा सिंह की लोकप्रियता सिर्फ अखाड़े तक सीमित नहीं रही। उनकी मजबूत कद-काठी और प्रभावशाली व्यक्तित्व ने उन्हें फिल्मी दुनिया की ओर भी आकर्षित किया। उन्होंने 1952 में फिल्म संगदिल से बॉलीवुड में कदम रखा और इसके बाद कई हिंदी और पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया।  

उनकी सबसे प्रसिद्ध भूमिका रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में हनुमान के रूप में आई। इस भूमिका ने उन्हें भारत के हर घर में लोकप्रिय बना दिया।  

इसके अलावा, उन्होंने किंग कांग, रुस्तम-ए-बगदाद, फौलाद, जग्गा, सिकंदर-ए-आजम, धरती, मेरा नाम जोकर, बजरंगबली, करिश्मा कुदरत का जैसी कई फिल्मों में भी काम किया। उनकी छवि एक शक्तिशाली और सकारात्मक नायक की बनी, जिसने भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई।  

        राजनीति और सामाजिक योगदान:

कुश्ती और सिनेमा में अपार सफलता हासिल करने के बाद दारा सिंह ने सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया। 2003 में वे राज्यसभा के सदस्य बने और राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने खेलों को बढ़ावा देने और पहलवानों की स्थिति सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल किए।  

इसके अलावा, वे समाज सेवा से भी जुड़े रहे और कई गरीब बच्चों की शिक्षा और खेलों में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए योगदान दिया। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में कुश्ती को पुनर्जीवित करने के लिए भी प्रयास किए और कई युवा पहलवानों को प्रशिक्षित किया।  

              भारतीय कुश्ती का गौरव:

दारा सिंह सिर्फ एक पहलवान नहीं थे, बल्कि भारतीय कुश्ती का गौरव थे। उन्होंने दिखाया कि मेहनत, अनुशासन और लगन से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनके संघर्ष और समर्पण ने भारत के युवाओं को प्रेरित किया और वे हमेशा खेल प्रेमियों के लिए आदर्श बने रहेंगे।  

उनका जीवन एक संदेश है कि सफलता मेहनत और आत्मविश्वास से मिलती है। वे न केवल कुश्ती के अखाड़े के बादशाह थे, बल्कि उन्होंने फिल्मों, राजनीति और समाज सेवा में भी अपना नाम अमर कर दिया।  

                    अमर विरासत:

2012 में 84 वर्ष की उम्र में दारा सिंह का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। वे भारतीय ताकत, मेहनत और समर्पण का प्रतीक थे। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि यदि इंसान सच्चे मन से मेहनत करे, तो उसे कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता।  

आज भी उनकी कहानियां नए पहलवानों और युवाओं को प्रेरित करती हैं। दारा सिंह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक ऐसा अध्याय हैं, जो भारतीय कुश्ती और सिनेमा के इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा।  

उनकी जीवनी और संघर्षमयी यात्रा आज भी भारतीय कुश्ती और भारतीय सिनेमा के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनके द्वारा स्थापित मानदंडों को पार करना आसान नहीं होगा, लेकिन उनके जीवन से प्रेरणा लेकर नए पहलवान और अभिनेता अपने करियर को ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।  

उनका जीवन संघर्ष, मेहनत, सफलता और समर्पण की एक जीती-जागती मिसाल है, जो हमेशा हर भारतीय के दिल में जीवित रहेगी।  


प्रधान संपादक:अज्जू सोनी, ग्रामीण खबर MP  
संपर्क सूत्र: 9977110734

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