बेटे की चाहत में मां बनी हत्यारी, मासूम बेटी की बेरहमी से ली जान।
बेटी पैदा होने पर मां ने पानी की टंकी में डुबोकर मार डाला, अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा।
बेटे की चाहत में मां बनी कातिल, बेटी को उतारा मौत के घाट।
भोपाल,मध्यप्रदेश:
मध्यप्रदेश के भोपाल जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जहां एक मां ने महज बेटे की चाहत में अपनी मासूम बेटी की हत्या कर दी। यह दर्दनाक घटना खजुरी थाना क्षेत्र की है, जहां 16 सितंबर 2020 को आरोपी महिला ने अपनी एक महीने की नवजात बेटी को पानी की टंकी में डुबोकर मार डाला। अदालत ने मां को दोषी मानते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई है।
बेटी के जन्म से नाराज मां ने कर दी हत्या:
मामले की जांच में पता चला कि आरोपी सरिता मेवाड़ा बेटी के जन्म से इतनी निराश थी कि उसने उसे जान से मारने का फैसला कर लिया। पूछताछ के दौरान उसने स्वीकार किया कि वह बेटे की चाहत रखती थी और बेटी होने के कारण मानसिक रूप से परेशान थी। इसी निराशा में उसने अपनी मासूम बच्ची की हत्या कर दी।
घटना के बाद जब पुलिस ने जांच शुरू की तो मां पर संदेह गहराने लगा। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ हुआ कि बच्ची की मौत डूबने से हुई थी। जब पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की, तो आरोपी मां ने अपराध कबूल कर लिया।
अदालत का फैसला: बेटियों के महत्व पर दिया जोर:
भोपाल जिला अदालत के न्यायाधीश अतुल सक्सेना ने इस मामले की सुनवाई के दौरान बेटियों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने अपने निर्णय में कहा कि आज के समाज में बेटियां किसी भी रूप से बेटों से कम नहीं हैं। वे सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण का सशक्त आधार हैं।
न्यायाधीश ने रविंद्रनाथ टैगोर की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा –"जब एक पुत्री का जन्म होता है तो यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि ईश्वर मानव जाति से अप्रसन्न नहीं है, क्योंकि वह पुत्रियों के माध्यम से स्वयं को साकार करता है।"
बेटे की चाह में हत्या, समाज के लिए बड़ा सवाल:
यह मामला केवल एक हत्या का नहीं, बल्कि उस मानसिकता का भी उदाहरण है, जो समाज में बेटों को प्राथमिकता देती है और बेटियों के जन्म को अभिशाप समझती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण सोच केवल एक परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चुनौती है।
भोपाल अदालत का यह फैसला उन लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो पुत्रमोह में अंधे होकर बेटियों के अस्तित्व को ही नकार देते हैं। यह निर्णय समाज को यह समझाने के लिए महत्वपूर्ण है कि बेटा और बेटी में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। बेटी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितना कि बेटा।
यह मामला समाज के लिए एक आईना है, जिसमें हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है ताकि भविष्य में कोई मासूम बेटी इस प्रकार की क्रूरता का शिकार न हो।