खरीदी केंद्र कूड़ा में खाद्य आपूर्ति अधिकारी पीयूष शुक्ला लेते हैं खरीदी प्रभारी से कमीशन, जितने लगते हैं चक्कर उतना बढ़ता हैं कमीशन, खरीदी प्रभारी का कहना कि में सबको देता हूं पैसा मेरी नहीं हों सकती जांच।
कटनी,बहोरीबंद:
मध्य प्रदेश के कटनी जिले के बहोरीबंद तहसील अंतर्गत स्थित खरीदी केंद्र कूड़ा में प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोलने वाले मामले सामने आए हैं। यह केंद्र सरकारी योजनाओं और नियमों की अनदेखी का बड़ा उदाहरण बन चुका है। जहां एक ओर किसान अपनी मेहनत की फसल बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों और व्यापारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार का खेल खुलकर सामने आ रहा है। लिहाज़ा अधिकारियों की मनमानी इस तरह चरम पर हैं कि जितने बार चक्कर लगते हैं उतना इनका कमीशन और बढ़ जाता है ऐसा सेल्समैन आशीष पटैल ने बताया, सेल्समैन आशीष पटैल का कहना है कि अधिकारियों के परेशान करने के कारण खरीदी करने का मन नही करता बहुत पैसा लेते हैं।
धान में कचरा, घटतौली का खेल
केंद्र पर किसानों की फसल को गुणवत्ता के आधार पर खारिज कर दिया जाता है, जबकि व्यापारियों की खराब धान को प्राथमिकता दी जा रही है। धान में अत्यधिक कचरा और खराब गुणवत्ता के बावजूद व्यापारियों की फसल को आसानी से स्वीकार किया जाता है। तौल प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की जा रही है। किसानों की फसल का वजन 41.500 किलोग्राम प्रति क्विंटल कर दिया जाता है, जिससे हर तौल में उनका नुकसान होता है। किसान अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करते हैं, लेकिन उनकी जगह व्यापारियों की धान पहले तौली जाती है।
केंद्र बना भ्रष्टाचार का अड्डा
केंद्र प्रभारी आकाश लोधी तो केंद्र पर मौजूद नहीं थे, लेकिन स्वयं को सह प्रभारी बताने वाले अविनाश और आशीष पटेल ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने स्वीकार किया कि अधिकारियों को खुश करने के लिए प्रति क्विंटल 5-6 रुपये कमीशन देना पड़ता है। उन्होंने कहा, "फूड इंस्पेक्टर पियूष शुक्ला जी को हर बार पैसे देने पड़ते हैं। ऐसे में हम किसानों की धान पर ध्यान नहीं दे सकते। हड़प्पा प्रक्रिया को भी रोकने का मुख्य कारण यही है।"
किसानों के साथ खुलेआम चल रही लूट
यह स्थिति किसानों के साथ खुलेआम अन्याय है। किसानों की मेहनत की फसल खराब गुणवत्ता का बहाना बनाकर अस्वीकार कर दी जाती है, जबकि व्यापारियों की फसल को बिना किसी रोक-टोक के खरीदा जा रहा है। किसानों के पास न तो समय है और न ही साधन कि वे इस अन्याय का विरोध कर सकें।
प्रशासन बना मूकदर्शक
इतने बड़े पैमाने पर चल रहे इस भ्रष्टाचार पर प्रशासन की चुप्पी सवाल खड़े करती है। किसानों के हितों की अनदेखी और व्यापारियों के पक्ष में लिए गए फैसले कहीं न कहीं भ्रष्टाचार और मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं।