मनुष्य अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाने से ही महान बन सकता है- ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी।
विदिशा:-प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ए 33 मुखर्जी नगर द्वारा ब्रह्माकुमारीज की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी का 59 व पुण्य स्मृति दिवस आध्यात्मिक ज्ञान दिवस की रूप में मनाया गया जिसमें ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने मातेश्वरी जी की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा कि मम्मा की वाणी इतनी सरल, मधुर और कशिश वाली होती थी सुनने वालों के विचार ही बदल जाते थे। मम्मा में परखने की शक्ति और निर्णय करने की शक्ति बहुत तेज थी मम्मा परखकर प्यार देकर बच्चों को समर्पण करा देती थी। मम्मा जगत की भी मम्मा थी उनमें बेहद का प्यार बेहद की दृष्टि थी मम्मा का अलौकिक नाम राधे था बाबा का एक-एक शब्द बड़े प्यार से सुनती, समाती और उसे बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट कर सबको सुनाती थी इसलिए तो सरस्वती के हाथ में ज्ञान की वीणा दिखाते हैं कभी कुछ भी बात हो जाए ड्रामा का पाठ मम्मा को बहुत पक्का था। उनको साक्षी होकर के देखने की इतनी अच्छी आदत थी जो कुछ भी हो जाए हलचल में नहीं आई सदा एक रस मुस्कुराता हुआ चेहरा रहता हम सबको भी सदा नथिंगन्यु का पाठ पढ़ाकर अचल अडोल बना देती। ब्रह्माकुमारी रुक्मणी दीदी ने बताया कि मम्मा अपने जीवन काल में मन, वचन, कर्म की पक्की थी मातेश्वरी जी की स्थिति पर विचार किया जाए तो मालूम होता था कि उनका मन निर्विघ्न था मातेश्वरी की अपनी वाणी में प्रायः कर्मों की गति पर प्रकाश डाला वह कहती थी कि मनुष्य अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाने से ही महान बन सकता है। अतः कर्मों का संन्यास करने से तो वह श्रेष्ठ नहीं बन सकेगा। प्रायः सभी धर्म के लोग यह तो कहते हैं कि परमात्मा हमारा माता-पिता बंधु सखा सदगुरु और सर्वस्व है परंतु जैसे वे लौकिक जीवन में इन संबंधों को व्यावहारिक रूप से निभाना जानते हैं वैसे पारमार्थिक दृष्टिकोण से परमात्मा के साथ अपने इन संबंधों को निभाना नहीं जानते यही कारण है कि वे परमात्मा से मुक्ति जीवन मुक्ति या सुख, शांति की निधि की प्राप्ति नहीं कर सकते वे कहा करती की जन्म-जन्मांतर देह अभियान और विकारों वाला जीवन तो देख लिया शास्त्रों, तीर्थो, यात्राओं आदि का पुरुषार्थ करके देख लिया, आज जो हमारा हाल है क्या उससे यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें हमें वह प्राप्ति नहीं हुई जो हम चाहते हैं तब फिर सोचने की क्या बात है अब परमपिता परमात्मा केवल इतना ही तो कहते हैं कि इन विकारों को छोड़ो और इस रहे हुए जीवन की बाकी समय में पवित्र बनो ताकि मैं आपको ईश्वरीय वर्षा दूं। वे पूछती थी कि क्या यह सौदा नहीं करना है विनाश सामने है। अभी भी फैसला नहीं करेंगे तो कब करेंगे इस प्रकार मातेश्वरी शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा के महावाक्यों को सरलता से समझाते हुए और नियमों तथा मर्यादाओं की सुगमता से धारण कराते हुए सभी को आगे बढ़ाते चल रही थी। वह अति विशिष्ट रोल अदा करते हुए विभिन्न विश्व नाटक में दूसरे रोल अदा करने चली गई जिससे कि सतयुग राज्य भाग की पुनर्स्थापना में मदद मिले ।